Sukhmani Vani

                                                   
सुखमनी साहिब वाणी

                                                                             सुखमनी साहिब वाणी



      १ ओंकार
                 सतनाम श्री वाहेगुरुजी
       


      
                   गुरु जी के प्यारोआज  एक  रूहानी सफर  की जानकारी लेने की  तैयारी कर रहे है।  यह रूहानी सफर हमारे अपने शरीर और आत्मा दोनों का जोड़ है। इस रूहानी सफर पर  चलने का  रास्ता सिख धर्म के प्रथम  गुरु  श्री गुरु नानक देव जी ने  भटके हुए इंसानों को दिखलाया थाके किस तरह के रास्ते पर चल कर हम एक सुखमय  और खुशहाल जीवन जी सकते है ।  जो श्री गुरु साहिब जी ने श्री गुरु ग्रन्थ साहिब बीच  सुशोभित किया हुआ है।

   लेकिन  गुरु जी दे प्यारो , आज हम विचार करेंगे एक ऐसे  पवित्र और पावन वाणी /रास्ते का जो  गुरु जी ने श्री गुरु ग्रन्थ साहिब मैं पृष्ठ 262   से 296 तक विराजमान /शोभनीय किया है।  यह वाणी सिख धर्म के पाँचवें गुरु श्री गुरु अर्जुन देव जी  जिनको श्री गुरु नानक देव जी का पांचवा शरीर  माना जाता हैदुवारा राग गउड़ी मैं रचित किया गया  है  (इस लिये  महला ५ लिखा जाता है )।  जब श्री गुरु अर्जुन देव जी गद्दी पर विराजमान थे,  उस वक्त मुग़ल राजा जहांगीर का राज था और उस समय जनता सूखेआकालअत्याचारउत्पीड़न , दमन और पाखंड से बहुत परेशान थी , ऐसे मैं जनता ने गुरु जी से प्रार्थना की ,गुरूजी कोई ऐसा उपये/ रास्ता  दिखाओ ,जिस पर चल कर और सिमरन करके हम अपने जीवन के दुखों से छुटकारा पा सके।

  जैसे की इतिहास  गवाह है की तब  श्री गुरु अर्जुन देव जी ने एक ऐसी पवित्र और पावन वाणी की रचना की जिस मैं गुरु जी ने मानों अपनी आत्मा ही डाल  दी होजिसको गुरूजी ने सुखमनी साहिब का नाम दिया,(  सुख + मणि  ) यानि हर तरह के सुखो से भरी हुई।  तब गुरु जी ने जनता को सम्बोधन किया और कहा की  यह एक बहुत ही पवित्र और पावन वाणी है  जो भी इंसान इस वाणी का रोजाना  सुबह  सिमरन करेगा या सुनेगा  और जो  इस वाणी के अनुसार  अपना जीवन चलयेगा  उसके जीवन के सारे कष्ट दूर हो  जायेगे ।

 अगर इंसान /मनुष्य  इस सुखमनी साहिब का पाठ हर रोज अपनी शुद्ध और पवित्र  आत्मा सेअपने दिल और मन से वैरद्वेष को निकाल कर करता है तो उस  इंसान की हर मनोकामना  पूर्ण होगी।  इस सुखमनी साहिब की वाणी को गुरु साहिब जी ने नितनेम  मैं नहीं रखा।

इस सुखमनी साहिब वाणी को सिखोंसहजधारी सिखों और अनेको हिन्दू परिवार  और अन्य गुरु गद्दी बाले जो  इस वाणी की महिमा को जानते  और पहचानते है  इस वाणी को श्रद्धा और प्रेम भाव से पढ़ते और सिमरन करते है।  कई अच्छी जानकारी वाले मुस्लिम भाई भी इस वाणी से वंचित  नहीं रहेउनमें भी सुखमनी साहिब वाणी का अत्यंत प्यार देखा  गया है।

 सुखमनी साहिब यह वह मणि है जो हर दुखों को दूर कर सुखो को प्रदान कर सकती है।   इस वाणी का  प्रभाव /तेज़  इतना अधिक है के इसके सिमरन और सुनने से  ही मन शांत और स्थिर  हो जाता है , प्रभु प्रेम से ह्रदये /दिल ,मन  विंध जाता है।  यह सुखमनी साहिब की वाणी ,रचना  हर तरह से पूर्ण  है।   सुखमनी साहिब वाणी का प्रारम्भ " १ ओंकार " से होता है ,  यानि  " १ (एक ) " वही प्रभु है जो "ओंकार -  ओं ( सब कुछ ) + कंर  ( करने वाला ) है , करता  है ,  ना उससे पहले कोई है  और ना ही उसके बाद कोई है।        
 
                                        सुखमनी   सुख अमृत प्रभ नामु ।।
                      भगत  जना  कै  मनि  विश्राम  ।।  रहाउ ।।

 गुरु जी  संभोदित  कर रहे है की  प्रभु का नाम सभ सुखो का मूल है यानि जड़ है  क्योंकि  अगर जड़ मजबूत होगी तो वृक्ष / पौधा  मजबूत होगा तभी बह हर तूफान और दुखों का सामना कर सकता है।   प्रभु का नाम ही अमृत है प्रभु के नाम का सिमरन  ही सुखो का खजाना है। यह खजाना प्रभु के भगतो के मन मैं ही विराजमान होता है।  जिन भगतो के मन मैं प्रभु के नाम का अमृत / सिमरन चलता रहता है या विरजमान होता  है वहाँ सुखो की वर्षा होती रहती है  यानि वही सुखमनी है।  सुखमनी साहिब ने आग्रह  किया है की  मन की शांति  पाने के लिये मनुष्य/इंसान को भगवान  /प्रभु के नाम का सिमरन /स्मरण  निरंतर /लगातार अभ्यास करना चाहिये। सुखमनी साहिब  वाणी मैं गुरु साहिब जी ने  24 असटपदीयो का वर्णन किया है , जिसमे हर असटपदी  से  ज्ञान रूपी ताले  की एक नई चाबी  प्राप्त होता है।  सुखमनी साहिब वाणी का आरम्भ " १ओंकार "  से  होकर  24 असटपदीयो का रूहानी सफर तेह करते हुए अन्त मैं " नानक इह गुणि नामु सुखमनी " पर विश्राम  होता है।

 सुखमनी  साहिब के अनुसार , प्रभु के नाम का सिमरन पुजाओ , धार्मिक  कर्म - काण्डो से बहुत सर्वश्रेष्ठ  माना गया है।  सिख जगत मैं सुखमनी साहिब का बहुत महत्व माना जाता हैजो भी कोई इस वाणी को प्यारश्रद्धा और विश्वास की भगति  के साथ सिमरन करता है  उसे आनंद और शांति के खज़ाने की प्राप्ति होती है।

 सिमरन एक प्रकार की  बाड़  का काम करती है , जिससे मनुष्य /इंसान के आसपास जो कोई सांसारिक परेशानी  या बुराई है बह उस इंसान को तोड़ने की हिम्मत नहीं करेंगी ।   सुखमनी साहिब के रचेता  श्री गुरु अर्जुन देव जी  खुद  कहते है के  जो  इंसान इस वाणी के पाठ  को अपने दिल मैं जगह  देता है  तो प्रभ हर वक्त उस इंसान के साथ - साथ रहता है, और रहेगा।  सुखमनी साहिब आध्यात्मिक  भक्ति को आनंद के शिखर की और ले जाती है, यह परमानन्द (परमात्मा के आनंद की प्राप्ति होती है ) इसे हम खशियो का  आभूषण  भी कह सकते है।  

 सुखमनी साहिब मैं श्री गुरु अर्जुनदेव जी कहते है जो मनुष्य/इंसान  प्रभु के नाम का सिमरन करता है वह इंसान एक साधु और व्रह्मज्ञानी की सांगत के सामान है , उसकी आत्मा हमेशा  प्रभु के संग रहती हैउसे प्रभुवाहेगुरु जी का प्यार मिलता रहता है।  वाणी हमे यह भी बताती है के हमारा जीवन कैसा होना चाहिये , क्या - क्या नहीं करना चाहिये इसका  उल्लेख सुखमनी साहिब की 24 असटपदीयो मैं साफ -साफ नजर आता है।     

आप सभी भगत जनों   से प्रार्थना है की हमारी कोशिश  मैं अगर कही कोई भी हमारी नसमझी जानकारी के  कारण  कोई गलती होगई  हो तो  हमे क्षमा  करना और हमे सही जानकारी देने की कृपा  जरूर करना। . .   

                                                  : धन्यवाद  :     
मूलमंत्र के  लिये *

       सुखमनी साहिब की व्याख्या  के लिया   (for Sukhmani  Sahib  ki  Vyakhiya )   

सुखमनी साहिब वाणी,Sukhmani Sahib Path
सुखो  की मणि